Friday, January 14, 2011

कबीर के दोहे - Kabir Ke Dohe


कबीर के दोहे

माटी कहे कुम्हार सेतु क्या रौंदे मोय । 
एक दिन ऐसा आएगामैं रौंदूगी तोय ॥ 

माला फेरत जुग भयाफिरा न मन का फेर । 
कर का मन का डार देमन का मनका फेर ॥ 

तिनका कबहुँ ना निंदयेजो पाँव तले होय । 
कबहुँ उड़ आँखो पड़ेपीर घानेरी होय ॥ 

गुरु गोविंद दोनों खड़ेकाके लागूं पाँय । 
बलिहारी गुरु आपनोगोविंद दियो मिलाय ॥ 

सुख मे सुमिरन ना कियादु:ख में करते याद । 
कह कबीर ता दास कीकौन सुने फरियाद ॥ 

साईं इतना दीजियेजा मे कुटुम समाय । 
मैं भी भूखा न रहूँ
साधु ना भूखा जाय ॥
धीरे-धीरे रे मनाधीरे सब कुछ होय । 
माली सींचे सौ घड़ाॠतु आए फल होय ॥ 

कबीरा ते नर अँध हैगुरु को कहते और । 
हरि रूठे गुरु ठौर हैगुरु रूठे नहीं ठौर ॥ 


माया मरी न मन मरामर-मर गए शरीर । 
आशा तृष्णा न मरीकह गए दास कबीर ॥ 

रात गंवाई सोय केदिवस गंवाया खाय । 
हीरा जन्म अमोल थाकोड़ी बदले जाय ॥ 

राम-रहीमा एक हैनाम धराया दोय।
कहै कबीरा दो नाम सुनिभरम परौ मति कोय।।
काशी-काबा एक हैएकै राम रहीम।
मैदा इक पकवान बहुबैठि कबीरा जीभ।।
एक वस्तु के नाम बहुलीजै वस्तु पहिचान।
नाम पक्ष नहिं कीजिएसार तत्व ले जान।।
राम कबीरा एक हैदूजा कबहु न होय।
अंतर टाटी कपट कीताते दीखे दोय।।
जाति न पूछौ साधु कीजो पूछौ तो ज्ञान।
मोल करो तलवार कापरा रहन दो म्यान।।
कबिरा तेई पीर हैजो जानै पर पीर।
जो पर पीर न जानि हैसो काफिर बेपीर
पोथी पढि-पढि जग मुवापंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम कापढ़े सो पण्डित होय।
निन्दक नियरे राखियेआँगन कुटी छबाय।
बिन पानी साबुन बिनानिरमल करै सुभाय।।
जहां दया तहँ धर्म हैजहां लोभ तहँ पाप।
जहां क्रोध तहँ काल हैजहाँ जहाँ क्षमा तहँ आप।।
पाहन पूजे हरि मिलैतौ मैं पूंजूँ पहार।
ताते यह चाकी भलीपीसी खाय संसार।।
कबीर माला काठ कीकहि समझावे तोहि।
मन ना फिरावै आपनोंकहा फिरावै मोहि।।
मूरख को समुझावतेज्ञान गाँठ का जाई।
कोयला होई न ऊजरोनव मन साबुन लाई।।
माला तौ कर में फिरैजीभ फिरै मुख माहिं।
मनुवा तौ चहुँदिसि फिरैयह ते सुमिरन नाहिं
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥

बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥

साँई इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय ।
मैं भी भूखा ना रहूँ साधु न भुखा जाय॥

जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥

उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥

सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥

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